शनिवार, २ जुलै, २०११

आरोग्य टिप्स

१) अम्लपित्त वाढलले असता ऊस खावे अथवा ऊसाचा रस प्यावा त्वरीत पोट साप होते. तसेच ऊस जेवना पुर्वी खाल्यास पित्त वाढ होत नाही.

2) आवाज बसला असता बारीक वस्त्रगाळ केलेला कात दोन घोट पाण्या सोबत घ्यावा त्वरीत घसा साफ होतो.

3) काविळ झाला असल्यास एक आठवडाभर रोज एक-दोन ऊस चाऊन खावे, किंवा दिवसातून ३/४ ग्लास ऊसाचा रस घेतल्याने रक्त तयार होण्याची क्रिया चालु होउन रूग्न बरा होतो. तसेच ताज्या गुळवेलीचा रस २० ग्रॅम खडीसाखर घालुन घेतल्यास सुध्दा काविळ बरा होतो.

४) सतत कान फुटत आसल्यास ऊसाचे कांडे गरम करून नंतर त्याचा रस काढून दोन- तिन चमचे कानात पिळल्यास कान फुटने कायमचे बंद होते.

५) केस येण्यासाठी व कोंडा नाहीसा होन्यासाठी :– वडाच्या कवळ्या पारंब्या वाटुन १०० ग्रॅम लगदा करावा त्यात एक लिटर तिळाचे तेल व ५० मि.ली. लिंबरस घालुन मंदाग्नीवर कढवावे. नुसते तेल राहीले असता ते गाळुन घ्यावे हे तेल नियमीत लावल्याने नविन केस यायला सुरूवात होते. व कोंडा सुध्दा नाहिसा होतो.

६) मुख दुर्गंधी :- तुरटिच्या पाण्याने गुळण्या केल्याने मुख दुर्गंधी तर जातेच व तोडाचे सर्व आजार सुध्दा दुर होतात.

७) दात दुखी :- वडाच्या पारंबिचे दातवन केल्याने दाताचे सर्व आजार बरे होतात. दाताचे किडने थांबते, दाताचे कवच पुन्हा तयार होते.

८) दमा :- दम्याचा त्रास असनाऱ्या रूग्नाने लवंग तोंडात ठेउन ति नरम झाल्यास खावी, असे एक-एक तासाने एक-एक लवंग खात रहावे दमा कमी कमी होत जाउन १/२ महिन्यात कायमचा नाहिसा होतो.

९) पोट साफ होण्यासाठी :- लसणच्या ८/१० पाकळ्या वाटुन तुपात तळुन सैधव लावुन दिवसातुन १/२ वेळेस खाल्याने पोट साप होते. तसेच तिळाचे तेल रोज अनशा पोटी २० मिली घेतल्याने पोट साप तर होतेच पण पोटाचे आन्सर सुध्दा बरे होतात.

१०) पोट दुखी :- आल्याचा रस, लिंबाचा रस व सैधव किंवा पादेलोन घालुन घेतल्याने पोट दुखायचे थांबते. तसेच हे मिश्रन रोज जेवना पुर्वी घेतल्याने अन्न पचन होन्यास मदत होते. हा उपक्रम जर एक वर्ष चालु ठेवला तर घशा पासुन गुद्दव्दारा पर्यत कॅन्सरची बाधा कधीच होनार नाही.

११) बल्डप्रेशर :- /७ लसणाच्या पाकळ्या आर्धा लिटर पाण्याच्या बाटलित टाकुन ति बाटलित हालवावी व नंतर दोन तास ठेवावी व त्या नंतर जेव्हा जेव्हा तहान लागेल तेव्हा हे पाणी प्यावे याने हाय बल्डप्रेशर कमी होउन नॉर्मल होतो.

१२) मुळव्याध :- रोज सकाळी तुळशीची पाने खल्याने मुळव्याध बरा होतो.

१३) मुतखडा :- पानफुटिचे पान व सोबत एक काळा मिरा असे दिवसातुन तिन वेळा खाल्याने मुतखडा १५ दिवसात गळुन पडतो. नोट :- मुतखडा असलेल्या व्यक्तीनी खालील वस्तु खावु नये – १) आवळा २) चिकु ३) भेंडी ४) पालक ५) गोबी ६) काकडी ७) स्ट्रॉबेरी ८) वाटान्याच्या शेंगा ९) टोमॅटो १०) काळी द्राक्षे ११) काजु १२) कॉफी पिउ नये १३) मशरूम १४) वांगे. कारण यात कॅल्शियम जास्त असते.

बुधवार, ११ मे, २०११

औषधी वनस्पति शतावरी



शतावरी ही एक उत्‍तम औषधी वनस्‍पती असून ती काटेरी झुपकेदार वेल स्‍वरूपात असते. कडू-गोड चवीची, शीतवीर्याची असून मुळे व पाने औषध म्‍हणून वापरली जातात. आपल्‍या परसबागेत शतावरी लावणे खुपच फायदयाचे आहे. शतावरीचा उपयोग स्‍त्रीयांच्‍या लैगिंग इच्‍छाशक्तित वाढ होणे, बाळंतपणातील अशक्‍तपणा दूर करणेसाठी, दूधवृध्‍दीसाठी व प्रजोत्‍पादनासाठी होतो. शतावरी म्‍हणजे शत-आवरी म्‍हणजेच शंभर नर ताब्‍यात असलेली नार असा होतो. शतावरीच्‍या मुळया दूधात वाटून लावल्‍यास स्‍तन वृध्‍दीसाठी त्‍याचा उपयोग होतो.

शतावरीच्‍या कंदामध्‍ये सँपोनीन, ग्‍लायकोसाईडस, फॉस्‍फरस, रायबोफलेवीन, थायमीन, पोटँशियम, व इतरही रासायनिक द्रव्‍ये आहेत. शतावरीमध्‍ये व्हिटॅमिन –ए, व्हिटॅमिन-सी, व्हिटॅमिन-बी-कॉम्‍पलेक्‍स जास्‍त प्रमाणात आढळतात. कँसर, क्षयरोग, कुष्‍ठरोग, आम्‍लपित्‍त, एडस इत्‍यादी आजारांवर उपचार करण्‍यासाठी शतावरी उपयोगात आणतात.

कॅन्‍सरच्‍या रूग्‍णांना तर शतावरी वरदानरूप ठरली आहे. त्‍याचेच हे उदाहरण एका व्‍यक्तिला तोंडाचा कॅंसर झाला होता. 5 मार्च 1971 रोजी तपासणी केल्‍यानंतर डॉक्‍टरांनी सांगितले की , याचा कॅन्‍सर शेवटच्‍या स्‍टेजला आहे. आता त्‍याचे ऑपरेशन करून देखील उपयोग होणार नाही. असे सांगून त्‍याला घरी पाठवून देण्‍यात आले. त्‍या कॅन्‍सर पिडीताला 5 एप्रिल 1971 रोजी असे कळले की शतावरीच्‍या सेवनाने कॅन्‍सर बरा होतो. त्‍याने शतावरीचे सेवन सुरू केले. त्‍याची स्थिती सुधारत गेली ऑगस्‍टमध्‍ये जेंव्‍हा एक्‍स-रे काढला तर कॅन्‍सर बरा झालेला आढळला. असा शतावरीचा महिमा आहे.

श्री. विकास शिंदे , अहमदनगर

मंगळवार, १ फेब्रुवारी, २०११

घरेलू नुस्खे - webdunia.com


घर में बनाएँ कंडीशनर
यदि आप कंडीशनर का प्रयोग करना चाहते हैं परंतु इसकी प्रक्रिया आपको झंझट भरी लगती है तो आप आयुर्वेदिक डीप कंडीशनर का प्रयोग 20 दिन में एक बार करें। आप इस कंडीशनर को स्वयं घर पर झटपट बना सकते हैं तथा 20 मिनट में बालों की डीप कंडीशनिंग कर सकते हैं। निर्माण विधि एवं प्रयोग विधि- आधा कटोरी हरी मेहँदी पावडर लें। इसमें गर्म दूध (गाय का) डालकर पतला लेप बना लें। इसी लेप में एक बड़ा चम्मच आयुर्वेदिक हेयर ऑइल डालें। इसे अच्छी तरह से मिला लें। जब यह लेप ठंडा हो जाए तब बालों की जड़ों में लगाएँ। 20 मिनट छोड़कर आयुर्वेदिक शैंपू पानी में घोलकर बालों को धो लें। इस डीप कंडीशनर द्वारा आपके बालों को पोषण भी मिलेगा एवं उसमें बाउंस (लोच) भी आ जाएगा।

सेहत के लिए मीठा, कड़वा चिरायता

बरसों से हमारी दादी-नानी कड़वे चिरायते से बीमारियों को दूर भगाती रही है। दरअसल, यह कड़वा चिरायता एक प्रकार की जड़ीबूटी है जो कुनैन की गोली से अधिक प्रभावी होती है। पहले इस चिरायते को घर में सूखा कर बनाया जाता था लेकिन आजकल यह बाजार में कुटकी चिरायते के रूप में उपलब्ध है। घर में चिरायता बनाने की विधि:100 ग्राम सूखी तुलसी के पत्ते का चूर्ण, 100 ग्राम नीम की सूखी पत्तियों का चूर्ण, 100 ग्राम सूखे चिरायते का चूर्ण लीजिए। इन तीनों को समान मात्रा में मिलाकर एक बड़े डिब्बे में भर कर रख लीजिए। यह तैयार चूर्ण मलेरिया या अन्य बुखार होने की स्थिति में दिन में तीन बार दूध से सेवन करें। मात्र दो दिन में आश्चर्यजनक लाभ होगा। बुखार ना होने की स्थिति में इसका एक चम्मच सेवन प्रतिदिन करें। यह चूर्ण किसी भी प्रकार की बीमारी चाहे वह स्वाइन फ्लू ही क्यों ना हो, उसे शरीर से दूर रखता है। इसके सेवन से शरीर के सारे कीटाणु झर जाते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक है। इसके सेवन से खून साफ होता है तथा धमनियों में रक्त प्रवाह सुचारू रूप से संचालित होता है।

सरल घरेलू उपाय, तुरंत आजमाएँ

गैस की तकलीफ से तुरंत राहत पाने के लिए लहसुन की 2 कली छीलकर 2 चम्मच शुद्ध घी के साथ चबाकर खाएँ। फौरन आराम होगा। प्याज के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से उल्टियाँ आना बंद हो जाती हैं। सूखे तेजपान के पत्तों को बारीक पीसकर हर तीसरे दिन एक बार मंजन करने से दाँत चमकने लगते हैं। हिचकी चलती हो तो 1-2 चम्मच ताजा शुद्ध घी, गरम कर सेवन करें। ताजा हरा धनिया मसलकर सूँघने से छींके आना बंद हो जाती हैं। प्याज का रस लगाने से मस्सों के छोटे-छोटे टुकड़े होकर जड़ से गिर जाते हैं। यदि नींद न आने की शिकायत है, तो रात्रि में सोते समय तलवों पर सरसों का तेल लगाएँ। यदि आवाज बैठी हुई है या गले में खराश है, तो सुबह उठते समय और रात को सोते समय छोटी इलायची चबा-चबाकर खाएँ तथा गुनगुना पानी पीएँ।


घरेलू उपाय मुँहासे घटाए

जामुन की गुठली को पानी में घिसकर चेहरे पर लगाने से मुँहासे दूर होते हैं। दही में कुछ बूँदें शहद की मिलाकर उसे चेहरे पर लेप करना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में मुँहासे दूर हो जाते हैं। तुलसी व पुदीने की पत्तियों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें तथा थोड़ा-सा नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से भी मुँहासों से निजात मिलती है। नीम के पेड़ की छाल को घिसकर मुँहासों पर लगाने से भी मुँहासे घटते हैं। जायफल में गाय का दूध मिलाकर मुँहासों पर लेप करना चाहिए। हल्दी, बेसन का उबटन बनाकर चेहरे पर लगाने से भी मुँहासे दूर होते हैं। नीम की पत्तियों के चूर्ण में मुलतानी मिट्टी और गुलाबजल मिलाकर पेस्ट बना लें व इसे चेहरे पर लगाएँ। नीम की जड़ को पीसकर मुँहासों पर लगाने से भी वे ठीक हो जाते हैं। काली मिट्टी को घिसकर मुँहासों पर लगाने से भी वे नष्ट हो जाते हैं।

दिल के रोगों से बचाए सब्जियाँ

भोजन में अनेक ऐसी वस्तुएँ हैं, जिन्हें प्रतिदिन प्रयोग करके हृदयरोग व हृदयाघात से बचा जा सकता है। ये हैं- प्याज- इसका प्रयोग सलाद के रूप में कर सकते हैं। इसके प्रयोग से रक्त का प्रवाह ठीक रहता है। कमजोर हृदय होने पर जिनको घबराहट होती है या हृदय की धड़कन बढ़ जाती है उनके लिए प्याज बहुत ही लाभदायक है। टमाटर- इसमें विटामिन सी, बीटाकेरोटीन, लाइकोपीन, विटामिन ए व पोटेशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिससे दिल की बीमारी का खतरा कम हो जाता है। लौकी- इसे घिया भी कहते हैं। इसके प्रयोग से कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य अवस्था में आना शुरू हो जाता है। ताजी लौकी का रस निकालकर पोदीना पत्ती-4 व तुलसी के 2 पत्ते डालकर दिन में दो बार पीना चाहिए। लहसुन- भोजन में इसका प्रयोग करें। खाली पेट सुबह के समय दो कलियाँ पानी के साथ भी निगलने से फायदा मिलता है। गाजर- बढ़ी हुई धड़कन को कम करने के लिए गाजर बहुत ही लाभदायक है। गाजर का रस पिएँ, सब्जी खाएँ व सलाद के रूप में प्रयोग करें।

तुलसी : असली घरेलू औषधि

शरीर के वजन को नियंत्रित रखने हेतु भी तुलसी अत्यंत गुणकारी है। इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का वजन घटता है एवं पतले व्यक्ति का वजन बढ़ता है यानी तुलसी शरीर का वजन आनुपातिक रूप से नियंत्रित करती है। तुलसी के रस की कुछ बूँदों में थोड़ा-सा नमक मिलाकर बेहोश व्यक्ति की नाक में डालने से उसे शीघ्र होश आ जाता है। चाय बनाते समय तुलसी के कुछ पत्ते साथ में उबाल लिए जाएँ तो सर्दी, बुखार एवं मांसपेशियों के दर्द में राहत मिलती है। 10 ग्राम तुलसी के रस को 5 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से हिचकी एवं अस्थमा के रोगी को ठीक किया जा सकता है। तुलसी के काढ़े में थोड़ा-सा सेंधा नमक एवं पीसी सौंठ मिलाकर सेवन करने से कब्ज दूर होती है। दोपहर भोजन के पश्चात तुलसी की पत्तियाँ चबाने से पाचन शक्ति मजबूत होती है। 10 ग्राम तुलसी के रस के साथ 5 ग्राम शहद एवं 5 ग्राम पिसी कालीमिर्च का सेवन करने से पाचन शक्ति की कमजोरी समाप्त हो जाती है। दूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियाँ डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है।

खूबसूरत बालों का राज आपके पास / रेशमी और चमकते बालों के लिए

नारियल के तेल में नीम, तुलसी, शिकाकाई, मेथी, आँवला की पत्तियाँ डालकर उबाल लें व छानकार शीशी में भर लें। इस तेल से पूरे सिर की मालिश करें व चमत्कार देखें।ज्यादा झाग देने वाले शैम्पू का मतलब यह नहीं कि वह केशों को साफ भी अच्छा करेगा। झागदार शैम्पू के निर्माण में केमिकल अधिक मिलाए जाते हैं, जो बालों को नुकसान पहुँचाते हैं व बालों की जड़ों को कमजोर करते हैं। एक कप बियर को किसी बर्तन में गरम करें, तब तक गरम करें, जब तक आधा कप न रह जाए। गर्म करने से बियर में से अल्कोहल भाप बनकर उड़ना जरूरी है। अब इसे ठंडा होने दें, फिर उसमें एक कप अपना पसंदीदा शैम्पू मिला लें, याद रखें शैम्पू जो भी वापरें, एक ही ब्रांड का वापरें। इस घोल को किसी शीशी में भरकर रख लें। जब भी बाल धोना हों इससे बाल धोएँ, इससे बेजान बालों में निखार आएगा। बाल चमकदार व खूबसूरत होंगे। बाजारू कंडीशनर केवल बालों की बाहरी सतह यानी आवरण को ही चमकाने का काम करते हैं और उनकी संरचना को सही नियंत्रण में रखते हैं, यह नष्ट हुए बालों की फिर से मरम्मत नहीं कर सकते।
बालों में चमक प्रदान करने के लिए एक अंडे को खूब अच्छी तरह फेंट लें, इसमें एक चम्मच नारियल का तेल, एक चम्मच अरंडी का तेल, एक चम्मच ग्लिसरीन, एक चम्मच सिरका तथा थोड़ा सा शहद मिलाकर बालों को अच्छी तरह लगा लें, दो घंटे बाद कुनकुने पानी से धो लें। बाल इतने चमदार हो जाएँगे जितने किसी भी कंडीशनर से नहीं हो सकते। बाल धोते समय अंतिम बचे पानी में नीबू निचोड़ दें, उस पानी से बाल धोकर बाहर आ जाएँ, बालों में अनायास चमक आ जाएगी। नारियल के तेल में नीबू का रस मिलाकर बालों की जड़ों में लगाने से बालों का असमय पकना, झड़ना बंद हो जाता है।आँवले का चूर्ण व पिसी मेहँदी मिलाकर लगाने से बाल काले व घने रहते हैं। आलू उबालने के बाद के बचे पानी में एक आलू मसलकर बाल धोने से बाल चमकीले, मुलायम होंगे। सिर में खाज, सफेद होना व गंजापन आदि रुक जाएगा।

बालों में कुदरती चमक के लिए

रीठा, शिकाकाई और आँवला बराबर-बराबर मात्रा में लेकर बारीक करके कूट लें। इस चूर्ण को तीन चम्मच की मात्रा में पानी में भीगने दें। तीन चार घंटे बाद इसका अच्छी तरह उबाल कर छान लें। अब इसमें एक नीबू का रस तथा दो चम्मच नारियल का तेल मिला लें। इस मिश्रण से सिर के बाल धोने से बाल कुदरती रूप से चमकदार बनते हैं।बालों को कुदरती चमक देने के लिए मेहँदी और आँवला प्रयोग में जरूर लाएँ।दो चम्मच ग्लीसरीन, 100 ग्राम दही, दो चम्मच सिरका, दो चम्मच नारियल का तेल मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को आधा घन्टे तक बालों में लगाएँ ‍फिर पानी से बालों को साफ करें। बालों में कुछ देर के लिए खट्टी दही लगाएँ फिर गुनगुने पानी से बाल धो डालें। बाल एकदम मुलायम हो जाएँगे। मेहँदी और आँवले के चूर्ण को पानी में मिलाकर गाढ़ा घोल बना लें इस घोल में एक नींबू का रस भी मिला लें। इस मिश्रण को बालों में लगाए। दो घंटे बाद बालों को गुनगुने पानी से धो डालें। कपूर व नींबू का रस नारियल के तेल में मिला कर सिर के बालों की जड़ों में लगाएँ। ऐसा करने से बाल मुलायम और कोमल बनेंगे।

बालों के लिए सरल नुस्खे

दो चम्मच त्रिफला पावडर 2 मग पानी में डालकर अच्छी तरह उबालें। छानकर ठंडा कर लें। इस पानी को 2-3 बार बालों में डालें तथा 5 मिनट बाद शैंपू कर लें। बाल चमकदार व मुलायम बनेंगे। डेंड्रफ होने पर त्रिफला के स्थान पर नीम की पत्तियों का पावडर लें एवं उपरोक्त विधि से ही प्रयोग करें। डेंड्रफ की समस्या धीरे-धीरे कम होने लगेगी। आँवले का पेस्ट बालों में लगाकर 20 मिनट रखें फिर शैंपू कर दें। बालों में मजबूती आएगी। बालों में सोने के पहले तेल लगाएँ। सुबह उठकर गर्म पानी में टॉवेल डुबाकर, निचोड़कर सर पर बाँधें। 5 मिनट बाद शैंपू को पानी में घोलकर बाल धो लें। तेल के पश्चात दो बार शैंपू करें। इससे आपके बाल चमकीले तथा मुलायम हो जाएँगे। आधा कटोरी हरी मेहँदी पावडर लें। इसमें गर्म दूध (गाय का) डालकर पतला लेप बना लें। इसी लेप में एक बड़ा चम्मच आयुर्वेदिक हेयर ऑइल डालें। इसे अच्छी तरह से मिला लें। जब यह लेप ठंडा हो जाए तब बालों की जड़ों में लगाएँ। 20 मिनट छोड़कर आयुर्वेदिक शैंपू पानी में घोलकर बालों को धो लें। इस डीप कंडीशनर द्वारा आपके बालों को पोषण भी मिलेगा एवं उसमें बाउंस (लोच) भी आ जाएगा।

चारोली से चेहरा चमकाएँ

मुँहासे- नारंगी और चारोली के छिलकों को दूध के साथ पीस कर इसका लेप तैयार कर लें और चेहरे पर लगाए। इसे अच्छी तरह सूखने दें और फिर खूब मसल कर चेहरे को धो लें। इससे चेहरे के मुँहासे गायब हो जाएँगे। अगर एक हफ्ते तक प्रयोग के बाद भी असर न दिखाई दे तो लाभ होने तक इसका प्रयोग जारी रखें। खुजली - अगर आप गीली खुजली की बीमारी से पीड़ित हैं तो 10 ग्राम सुहागा पिसा हुआ, 100 ग्राम चारोली, 10 ग्राम गुलाब जल इन तीनों को साथ में पीसकर इसका पतला लेप तैयार करें और खुजली वाले सभी स्थानों पर लगाते रहें। ऐसा करीबन 4-5 दिन करें। इससे खुजली में काफी आराम मिलेगा व आप ठीक हो जाएँगे। चेहरे पर लेप- चारोली को गुलाब जल के साथ सिलबट्टे पर महीन पीस कर लेप तैयार कर चेहरे पर लगाएँ। लेप जब सूखने लगे तब उसे अच्छी तरह मसलें और बाद में चेहरा धो लें। इससे आपका चेहरा चिकना, सुंदर और चमकदार हो जाएगा। इसे एक सप्ताह तक हर रोज प्रयोग में लाए। बाद में सप्ताह में दो बार लगाते रहें। इससे आपका चेहरा लगेगा हमेशा चमकदार।


असरकारी नुस्खे, आजमा कर देखें

डायबिटीज का इलाज- गुड़हल के लाल फूल की 25 पत्तियाँ नियमित खाएँ। सदाबहार के पौधे की पत्तियों का सेवन करें। काँच या चीनी मिट्टी के बर्तन में 5-6 भिंडियाँ काटकर रात को गला दीजिए, सुबह इस पानी को छानकर पी लीजिए।पत्तियों से बालों की खूबसूरती- मैथीदाना, गुड़हल और बेर की पत्तियाँ पीसकर पेस्ट बना लें। इसे 15 मिनट तक बालों में लगाएँ। इससे आपके बालों की जड़ें मजबूत होंगी और स्वस्थ भी। मेहँदी की पत्तियाँ, बेर की पत्तियाँ, आँवला, शिकाकाई, मैथीदाने और कॉफी को पीसकर शैम्पू बनाएँ। इससे बाल चमकदार और घने होंगे।डेंड्रफ की समस्या से निजात पाने के लिए नींबू और आँवले का सेवन करें और लगाएँ। कैल्शियम, आयरन की पूर्ति के लिए सतावरी के कंद का पावडर बनाकर आधा चम्मच दूध के साथ नियमित लें, इससे कैल्शियम की कमी नहीं होगी। आयरन बढ़ाने के लिए पालक, टमाटर और गाजर खाएँ। बुद्घि तीव्र करने के लिए अश्वगंधा-100 ग्राम, सतावरी पावडर- 100 ग्राम, शंखपुष्पी पावडर-100 ग्राम, ब्राह्मी पावडर- 50 ग्राम मिलाकर शहद या दूध के साथ लेने से बच्चों की बुद्धि तीव्र होती है।

लहसुन : ठंडे मौसम का गर्म साथी

लहसुन का सेवन करने वालों को टीबी रोग नहीं होता। लहसुन कीटाणुनाशक है। एंटीबायोटिक औषधियों का अच्छा विकल्प है। लहसुन से टीबी के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। सबसे पहले लहसुन को छील लीजिए। एक कली के तीन-चार टुकड़े कर लें। दोनों समय भोजन के आधा घंटे बाद काटे हुए दो टुकड़ों को मुँह में रखें। धीरे-धीरे चबाएँ। जब अच्छी तरह से उसका रस बन जाए तब ऊपर से पानी पीकर सारी चबाई लहसुन निगल लें। लहसुन का तीखापन सहन नहीं कर पाते हों तो एक-एक मनुक्का में दो-दो टुकड़े रखकर चबाएँ। एक लहसुन की चार कलियाँ छीलकर तीस ग्राम सरसों के तेल में डाल दें। उसमें दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने डालकर धीमी-धीमी आँच पर पकाएँ। लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें। इस गुनगुने गर्म तेल की मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है। लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पाँच कलियाँ उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियाँ मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।

साँवली से सलोनी बन जाए

दुनिया की कोई भी क्रीम आपको गोरा नहीं बना सकती अत: आपको जो त्वचा प्राकृतिक रूप से मिली है उसी को स्वस्थ और आकर्षक बनाने के जतन करने चाहिए। साँवली त्वचा को सलोनी रंगत देने के लिए अपनी मजीठ, हल्दी, चिरौंजी 50-50 ग्रा. लेकर पाउडर बना लें। एक-एक चम्मच सब चीजों को मिलाकर इसमें 6 चम्मच शहद मिलाएँ और नींबू का रस तथा गुलाब जल डालकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को चेहरे, गरदन, बाँहों पर लगाएँ और एक घंटे के बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो दें। ऐसा सप्ताह में दो बार करने से चेहरे का साँवलापन दूर होकर रंग निखर आएगा। नींबू व संतरे के छिलकों को सुखाकर चूर्ण बना लें। इस पाउडर को हफ्ते में एक बार बिना मलाई के दूध में मिलाकर लगाएँ, त्वचा में आकर्षक चमक आएगी। जाड़े के दिनों में दूध में केसर या एक चम्मच हल्दी का सेवन करने से भी रक्त साफ होता है, फलस्वरूप रंग भी खिल उठता है।

धनिया के आसान घरेलू इलाज

नेत्र रोग : आँखों के लिए धनिया बड़ा गुणकारी होता है। थोड़ा सा धनिया कूट कर पानी में उबाल कर ठंडा कर के, मोटे कपड़े से छान कर शीशी में भर लें। इसकी दो बूँद आँखों में टपकाने से आँखों में जलन, दर्द तथा पानी गिरना जैसी समस्याएँ दूर होती हैं। नकसीर : हरा धनिया 20 ग्राम व चुटकी भर कपूर मिला कर पीस लें। सारा रस निचोड़ लें। इस रस की दो बूँद नाक में दोनों तरफ टपकाने से तथा रस को माथे पर लगा कर मलने से खून तुरंत बंद हो जाता है। गर्भावस्था में जी घबराना : गर्भ धारण करने के दो-तीन महीने तक गर्भवती महिला को उल्टियाँ आती है। ऐसे में धनिया का काढ़ा बना कर एक कप काढ़े में एक चम्मच पिसी मिश्री मिला कर पीने से जी घबराना बंद होता है। पित्ती : शरीर में पित्ती की तकलीफ हो तो हरे धनिये के पत्तों का रस, शहद और रोगन गुल तीनों को मिला कर लेप करने से पित्ती की खुजली में तुरंत आराम होता है।

तुलसी की चाय, सेहत बनाए

तुलसी की चाय प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाकर रोगों से बचाने वाली, स्फूर्तिदायक, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाली होती है। सामग्री : तुलसी के सुखाए हुए पत्ते (जिन्हें छाया में रखकर सुखाया गया हो) 500 ग्राम, दालचीनी 50 ग्राम, तेजपात 100 ग्राम, ब्राह्मी बूटी 100 ग्राम, बनफशा 25 ग्राम, सौंफ 250 ग्राम, छोटी इलायची के दाने 150 ग्राम, लाल चन्दन 250 ग्राम और काली मिर्च 25 ग्राम। सब पदार्थों को एक-एक करके इमाम दस्ते (खल बत्ते) में डालें और मोटा-मोटा कूटकर सबको मिलाकर किसी बर्नी में भरकर रख लें। बस, तुलसी की चाय तैयार है। विधि : आठ प्याले चाय के लिए यह 'तुलसी चाय' का मिश्रण (चूर्ण) एक बड़ा चम्मच भर लेना काफी है। आठ प्याला पानी एक तपेली में डालकर गरम होने के लिए आग पर रख दें। जब पानी उबलने लगे तब तपेली नीचे उतार कर एक चम्मच मिश्रण डालकर फौरन ढक्कन से ढँक दें। थोड़ी देर तक सीझने दें फिर छानकर कप में डाल लें। इसमें दूध नहीं डाला जाता। मीठा करना चाहें तो उबलने के लिए आग पर तपेली रखते समय ही उचित मात्रा में शकर डाल दें और गरम होने के लिए रख दें।

कड़वा करेला, मीठे गुण

करेले में विटामिन-सी के अलावा इसमें गंधयुक्त वाष्पशील तेल, केरोटीन, ग्लूकोसाइड, सेपोनिन, एल्केलाइड एवं बिटर्स पाए जाते हैं। इन सभी पौषक तत्वों के कारण करेला केवल सब्जी न होकर औषधि का काम भी करता है। इसके औषधीय गुण इस प्रकार हैं। करेला मधुमेह में रामबाण औषधि का कार्य करता है, छाया में सुखाए हुए करेला का एक चम्मच पावडर प्रतिदिन सेवन करने से डायबिटीज में चमत्कारिक लाभ मिलता है। क्योंकि करेला पेंक्रियाज को उत्तेजित कर इंसुलिन के स्रावण को बढ़ाता है। बिटर्स एवं एल्केलाइड की उपस्थिति के कारण इसमें रक्तशोधक गुण पाए जाते हैं। इसका प्रयोग करने से फोड़े-फुंसी एवं चर्मरोग नहीं होते। करेले के बीज में विरेचक-तेल पाया जाता है। जिसके कारण करेले की सब्जी खाने से कब्ज नहीं होता। वहीं इसके सेवन से एसिडिटी, खट्टी डकारों में आराम मिलता है। विटामिन ए की उपस्थिति के कारण इसकी सब्जी खाने से रतौंधी रोग नहीं होता है। जोड़ों के दर्द में करेले की सब्जी का सेवन व जोड़ों पर करेले के पत्तों का रस लगाने से आराम मिलता है।

पुदीना : ठंडा-ठंडा, कूल-कूल

पुदीना, काली मिर्च, हींग, सेंधा नमक, मुनक्का, जीरा, छुहारा सबको मिलाकर चटनी पीस लें। यह चटनी पेट के कई रोगों से बचाव करती है व खाने में भी स्वादिष्ट होती है। भूख न लगने या खाने से अरुचि होने पर भी यह चटनी भूख को खोलती है। खाँसी होने पर पुदीने व अदरक का रस थोड़े से शहद में मिलाकर चाटने से खाँसी ठीक हो जाती है। यदि लगातार हिचकी चल रही हो तो पुदीने में चीनी मिलाकर धीरे-धीरे चबाएँ। कुछ ही देर में आप हिचकी से निजात पा लेंगे। यदि आपको टॉंसिल की शिकायत रहती है, जिनमें अक्सर सूजन हो जाती हो तो ऐसे में पुदीने के रस में सादा पानी मिलाकर गरारा करना चाहिए। दिनभर बाहर रहने वाले लोगों को तलुओं में जलन की शिकायत रहती है, ऐसे में उन्हें फ्रिज में रखे हुए पिसे पुदीने को तुलओं पर लगाना चाहिए, राहत मिलती है। सूखा या गीला पुदीना छाछ, दही, कच्चे आम के पने में पिया जाए तो पेट में होने वाली जलन दूर होकर ठंडक मिलती है। लू से भी बचाव होता है। जहरीले कीट के काटने पर उस जगह पिसा पुदीना लगाना शीघ्र लाभ पहुँचाता है। पुदीने की पत्तियाँ धीरे-धीरे चबाने से भी रोगी को राहत मिलती है।

मुँह के छालों से कैसे बचें

टमाटर अधिक खाने से कभी छाले नहीं होते। चमेली के पत्ते चबाएँ और मुँह में बनने वाली लार थूकते जाएँ। छालों में आराम मिलेगा। छोटी हरड़ को बारीक पीसकर छालों पर लगाने से लाभ होता है। रात के खाने के बाद हरड़ चूसें। पेट को साफ रखें। मसालेदार भोजन से दूर रहें। तुलसी के पत्ते चबाने से भी छाले ठीक होते हैं। दो ग्राम भुने सुहागे का चूर्ण 15 ग्राम ग्लिसरीन में मिलाएँ। दिन में तीन बार छालों पर लगाएँ। फायदा होगा। महीन मिश्री पीस लें। इसमें कपूर मिलाकर जुबान पर बुरकें। इसमें मिश्री आठ भाग एवं कपूर एक भाग रखें। फिटकरी का कुल्ला करें।

छुहारे से सेहत सुधारें

4 छुहारे एक गिलास दूध में उबाल कर ठण्डा कर लें। प्रातः काल या रात को सोते समय, गुठली अलग कर दें और छुहारें को खूब चबा-चबाकर खाएँ और दूध पी जाएँ। लगातार 3-4 माह सेवन करने से शरीर का दुबलापन दूर होता है, चेहरा भर जाता है। सुन्दरता बढ़ती है, बाल लम्बे व घने होते हैं और बलवीर्य की वृद्धि होती है।यह प्रयोग नवयुवा, प्रौढ़ और वृद्ध आयु के स्त्री-पुरुष, सबके लिए उपयोगी और लाभकारी है।दमा : दमा के रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम 2-2 छुहारे खूब चबाकर खाना चाहिए। इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और कफ व सर्दी का प्रकोप कम होता है।

ब्यूटी के लिए दही लाजवाब

अलग-अलग शैंपू और रंगों का उपयोग करने से बालों की चमक कम हो गई हैं तो दही में बेसन घोलकर बालों की जड़ों में लगाकर एक घंटे बाद सिर धो लें। इससे बालों की चमक लौट आएगी और बालों की रूसी की समस्या से भी आपको निजात मिलेगी। रूसी की शिकायत वाले बालों के लिए दही में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सिर धोएँ। यह हफ्ते में दो बार अवश्य करें। इससे जहाँ बालों की रूसी खत्म होगी, वहीं बाल मुलायम, काले, लंबे व घने होंगे जो आपकी सुंदरता में चार चाँद लगाएँगे। अगर आप मुँहासे की समस्या से परेशान हैं तो अपने चेहरे पर खट्टे दही का लेप लगाएँ और चेहरा सूख जाए तब धो लें। थोड़े ही दिनों में आपको अप्रत्याशित लाभ होगा। अगर गर्दन के पिछले भाग में कालापन जमा हो गया है तो चिंता की कोई बात नहीं। नहाते समय गर्दन पर खट्टे दही से मालिश करें और धो लें।

स्वाइन फ्लू से घरेलू बचाव

रोज सुबह उठकर 5 तुलसी की पत्तियाँ धोकर खाएँ। गिलोए देश भर में बहुतायत से मिलता है। गिलोय की एक फुट लंबी डाल का हिस्सा, तुलसी की पाँच-छः पत्तियों के साथ 15 मिनट तक उबालें। स्वाद के मुताबिक सेंधा नमक या मिश्री मिलाएँ। कुनकुना होने पर इस काढ़े को पिएँ। यह आपकी रोग प्रतिरोधक शक्ति को चमत्कारिक ढंग से बढ़ा देगा। हमदर्द, वैद्यनाथ या किसी अच्छी आयुर्वेदिक दवा कंपनी का गिलोय भी ले सकते हैं। महीने में एक या दो बार कपूर की गोली पानी के साथ निगल लें। बच्चों को केले अथवा उबले हुए आलू में मिलाकर दे सकते हैं। याद रखें कपूर रोज नहीं लेना है, मौसम में एक बार या महीने में एक या दो बार ले सकते हैं। लहसुन की दो कलियाँ रोज सुबह खाली पेट कुनकुने पानी के साथ जरूर लें। इससे रोग प्रतिरोधक शक्ति में इजाफा होगा। रात को सोते समय हल्दी का दूध अवश्य पिएँ।

गुरुवार, १४ जानेवारी, २०१०

निपुत्रिका पुत्रवती कशी होईल? - डॉ. अरविंद संगमनेरकर

हल्लीच्या मुलामुलींच्या खेळण्यात कितीतरी नवीन नवीन खेळण्यांची भर पडत असते. लाकडी खेळण्यांची जागा प्लॅस्टिकच्या खेळण्यांनी घेतली. दोरी बांधून ओढायचा हत्ती, घोडे याची जागा रिमोट कंट्रोलच्या मोटारी, आगगाड्या रणगाड्यांनी घेतली. पण प्रत्येक मुलाच्या खेळण्यात एकतरी बाहुली असतेच असते. पूर्वी ठकी होती, आता प्लॅस्टिकची, डोळ्याची उघडझाप करणारी एवढाच फरक. पण खेळण्यात बाहुली असतेच असते. मुली तिला मांडीवर घेतात. झोपवतात, गाण म्हणतात. खाऊ घालतात, वेळप्रसंगी चापटपोळीही देतात!

खेळण्यातली बाहुली ही स्त्रीच्या उत्कट इच्छेचं असतं. मुलीच्या खेळण्यातली भातुकली हा तिच्या भविष्यातल्या स्वप्नांचा लुटुपुटीचा संसार असतो.

Being Mother
मुलगी मोठी होते. शिकते, संस्कारित होते आणि मग एक दिवस लग्न होऊन संसार करू लागते. भातुकलीच्या खेळामधला राजा-राणींचा संसार खऱ्या अर्थानं सुरू होतो. आता दुसरं स्वप्न सत्यात उतरण्याची वेळ केव्हा येते याची वाट ती पाहते-मनातली बाहुली खेळातली ठकी वास्तवात केव्हा येईल? बाळाला कुशीत घेऊन थोपटू, त्याला पाजू, खेळवू, मोठं करू.....

एकदोन, अडीच तीन. वर्षांमागून वर्षे जातात. पण कूस उजवतच नाही. मग राजाराणीच्या संसारात धुसफूस, चिडाचीड सुरू होते. सासू-नणंदाची कुजबूज. आईचा दुःखीकष्टी चेहरा, मैत्रिणी नातेवाईकाची दृष्टी सगळे तिच्या अंगावर येऊ लागत. कोणी सुचवतं तपासून ये. माहेरचे म्हणतात तपासायला दोघंही जा. कोणात दोष आहे?... घरात सुरू होते. पती तयार होत नाही. ‘तुझ्यातच दोष आहे. वंशाचा दिवा लागणार नाही ’ अशी विषारी वाक्य झेलत तिला दिवस काढावे लागतात. जिणं नको वाटू लागते.

पण अशावेळी तिने निराश व्हायचं अजिबात कारण नाही. मूल होत नाही म्हणून नशिबाला बोल लावायचे नाहीत. अंगरिधुपारे करायचे नाहीत. मन शांत ठेवायचं आणि डॉक्टरांचा सल्ला घ्यायचा.

हल्ली विज्ञान इतकं पुढं गेलं आहे की, निपुत्रिका पुत्रवती होऊ शकते. त्यासाठी कितीतरी वर्ष शास्त्रज्ञ झटत होते. अजूनी झटत आहेत. तेव्हा निराश का व्हायचं?

हे नवेनवे शोध आणि उपचारपद्धती विविध तऱ्हेच्या असतात. त्यांची माहिती असणं केव्हाही चांगलेच ठरतं. मूल न होणे हे काही त्या स्त्रीच्या चुकीमुळे झालेले नसतं. तेव्हा अशा स्त्रीला दोष देणं सर्वस्वी अयोग्यच उलट तिला बाकीच्यांनी, विशेषतः तिच्या पतीनं धीर द्यायला हवा दोघांनीही डॉक्टरांकडे जायला हवं आणि या उपचाराची माहिती करून घ्यायला हवी.

सर्वसाधारणपणे १० ते १५ टक्के स्त्रिया तीन वर्षांनंतरच्या वैवाहिक सुखानंतरही मातॄत्वाचं सुख अनुभवू शकत नाहीत. लग्नानंतर तीन वर्षांत जर दिवस गेले नाहीत तर त्याला सामान्यपणे वंध्यत्व म्हणतात.

तपासणी केव्हा करावी?

तीन वर्षांच्या वैवाहिक सुखानंतर, दिवस जाण्याची इच्छा असूनही कोणतंही नियोजनाचं साधन न वापरताही दिवस गेले नाहीत तर, तपासणी करून दिवस न जाण्याचं, मूल न होण्याचं कारण शोधायला हवं. अर्थात तीन वर्षाची ही मर्यादा ही लक्ष्मणरेषा नाही. कितीतरी जोडप्यांच्या बाबतीत ही कालमर्यादा बदलते. तसंच लग्नाच्यावेळी पतिपत्नींची वयं जास्त असतील तर, मात्र तीन वर्षांपर्यंतही न थांबता लगेचच तपासण्या करून घ्यायला हव्यात त्याच प्रमाणं वैवाहिक सुख, पुरुष किंवा स्त्रीमधील दोषांमुळं अनुभवाला येण कठीण जात असेल तर लगेचच तपासण्या करून घेणं चांगलं कारण यामुळे मूल न होण्याचा प्रश्न पुढं उद्‌भवणारच असतो.

गर्भधारणा कशी होते !

स्त्रीबीज व पुरुषबीज यांच्या संयोगातून गर्भधारणा होत असते हे सगळ्यांनाच माहिती आहे. स्त्री पुरुषबीजाचा संयोग गर्भनलिकेमध्ये ( फॅलोपियन ट्यूब ) होतो आणि नंतर हा गर्भ गर्भाशयामध्ये येऊन वाढीला लागतो. पाळी जर नियमित असेल, तर सामान्यता पाळीच्या चौदाव्या दिवशी किंवा चौदाव्या दिवसांच्या आसपास स्त्रीबीज निर्माण होत असतं. म्हणून पतिपत्नी संबंध या सुमाराला आला तर गर्भधारणा होण्याची शक्यता खूपच असते.

विवाहापूर्वी तपासणी

पुरुषत्वाचा किंवा स्त्रीत्वाचा अभाव असल्यामुळे लग्नानंतर येणारं वैफल्य टाळण्यासाठी, आपल्याला लक्षात येण्यासारखी विकृती आढळली तर, लग्नाआधी लगेच तपासणी करून घेतली तर त्यावर उपाययोजना करायला सुरुवात करता येते. पाळी येतच नसेल, अगदीच अनियमित असेल, स्तनांची वाढ योग्य तऱ्हेनं झालेली नसेल किंवा पुरुषांप्रमाणं स्त्रीच्या शरीरावर केसांची वाढ झालेली असेल तर याची कारण शोधून काढणं केव्हाही चांगलंच. तसंच पुरुषामध्ये दोन्ही अंडबीज अंडकोषात नसतील, स्तनांची वाढ होत असेल, दाढी मिशा योग्य प्रमाणात येत नसतील तरीही तपासणी आवश्यक ठरते. तसंच लैंगिक शिक्षण आधीपासून माहिती करून घेतले की, नंतर वैवाहिक जीवनात समस्या निर्माण होणार नाहीत.

कोणकोणत्या तपासण्या आवश्यक ?

वैद्यकीय तपासणी करण्यापूर्वी स्त्रीबीज निर्माण होणाऱ्या काळात पतिपत्नीसंबंध येऊ द्यावा. या गोष्टी कटाक्षान पाळूनही दिवस राह्यले नाहीत, तर तज्ज्ञ डॉक्टरांकडून तपासण्या करून घ्याव्यात. डॉक्टर प्रथम दोघांचीही संपूर्ण शारीरिक व रक्त, लघवीची म्हणजेच गुप्तरोगासाठी व मधुमेहासाठीच्या तपासणी करतात, नंतर होते ती पती आणि मग पत्नीची विशेष तपासणी.

पुरुष तपासणी

(१) पत्नीच्या कोणत्याही विशेष तपासण्यापूर्वी पतीची वीर्य तपासणी ही सोपी, विशेष त्रास न घेता व कोणत्याही धोक्याची शक्यता नसल्यामुळे जास्त सोयिस्कर असते.

वीर्यामध्ये जर दोष आढळलाच तर, निष्कारण पत्नीच्या शस्त्रक्रिया करून तपासण्या करण्यात काहीच फायदा नसतो. म्हणून तपासणी सुरुवातीलाच करतात.

(२) वीर्यात दोष आढळला तर अंडबीजाच्या तुकड्याची तपासणी ( टेस्टीक्यूलर बायास्पी ) केली जाते.

(३) त्यावेळी अंडचीजाकडून इंद्रियाकडे जाणाऱ्या नलिकांचीही तपासणी ( व्हासोग्रफी ) सुलभत्तेनं करता येते.

वीर्य तपासणीत जर काहीही दोष आढळला नाही तर मग पत्नीच्या तपासण्यास सुरुवात केली जाते.

स्त्री-तपासणी

(१) लॅप्रोस्कोप

ही तपासणी लॅप्रोस्कोप नावाच्या दुर्बिणीसारख्या यंत्राच्या सहाय्याने जाते. बेंबीपाशी सूक्ष्म क्षीद्र पाडून लॅप्रोस्कोपमधून पोटात बघता येतं. यामुळं गर्भाशयाची पिशवी, तिचा आकार, स्थिती ( पालथी सरळ ) तसंच फायब्राईडसारखे ट्यूमर असल्यास तीही वैगुण्य कळू शकतात. याचबरोबर गर्भनलिका, स्त्रीबीज निर्माण करणाऱ्या ग्रंथीही ( ओव्हरीज ) बघता येतात. यामुळं स्त्रीबीज वेळच्यावेळी निर्माण होतं का ? हेही कळतं. त्याचवेळी गर्भाशयाच्या तोंडातून रंगीत औषध घालून गर्भनळ्या उघड्या आहेत का ? तेही पाहाता येतं. बंद असतील तर त्या नेमक्या कुठं बंद झाल्या आहेत ? कशामुळे बंद झाल्या आहेत ? या गोष्टीही समजू शकतात. या तपासणीमुळे पोटातील टी. बी. ट्यूमर यासारखे रोग आहेत का ? हेही समजून घेता येते.

या नंतर गर्भाशयाचं तोंड मोठं करून ( डायलेशन) क्युरेटिंग करतात. गर्भाशयाच्या आतलं आवरण काढून ते पॅथॉलाजीकल तपासणीसाठी पाठवलं जातं. या तपासणीमुळं वेळच्यावेळी स्त्रीबीज निर्मिती होते की नाही-गर्भाशयाच्या पिशवीला टी. बी. सारखा जीवघेणा विकार आहे की नाही याचा शोध घेता येतो.

लॅप्रोस्कोपी केली तरी पेशंटला त्याच दिवशी घरी जाता येतं.

लॅप्रोस्कोपीचे फायदे

(१) एकाच ऑपरशेनमध्ये एकाच वेळी गर्भाशयाची संपूर्ण माहिती मिळू शकते.

(२) त्याचवेळी क्युरेटिंगचही ऑपरेशन होऊन जातं.

(३) गर्भनलिकांची तोंडं उघडी आहेत की नाही हे कळू शकतं.

(४) वेळच्या वेळी स्त्रीबीज निर्माण होतं की नाही हे कळतं .

(५) गर्भनलिका लाळेसारख्या प्रवाहामुळं ( म्यूकस ) बंद असेल, तर गर्भाशयाच्या तोंडातून भरलेल्या ओषधामुळं गर्भनलिका पुन्हा मोकळी होऊ शकते.

(२) इंडोस्कोपिक फोटोग्रॉफी

लॅप्रोस्कोपी करताना जे प्रत्यक्षात दिसतं ते या कॅमेऱ्याच्या सहाय्यानं कायमचं टिपून ठेवता येत आणि एखाद्या एक्सरेप्रमाणं त्यात बघून असलेला दोष सांगता येतो.

क्युरेटिंगचे फायदे

(१) गर्भाशयाच्या पिशवीचं सर्वसामान्य ज्ञान होतं.

(२) आतील आवरणाच्या पॅथॉलॉजीकल तपासणीनंतर स्त्रीबीज तयार होतं किंवा नाही हे कळतं.

(३) गर्भाशयाच्या पिशवीला टी. बी. सारखा विकार असेल तर त्याचे निदान होतं.

(४) पिशवीचं लहान असलेलं तोंड मोठं होतं.

(५) फायब्राईड, पॉलिपसारख्या ट्यूमरचं निदान होतं.

एक लक्षात ठेवलं पाहिजे की, क्युर्टिंग केल्यावर दिवस जातातच असं नाही. तसंच पुनः पुन्हा क्युरेटिंग करून घेतल्याने दिवस जातात असंही नाही. उलट या वारंवार होणाऱ्या क्युरेटिंगमुळेच गर्भाशयाच्या नळ्या बंद होण्याची शक्यता असते त्यामुळे कायमचे वंध्यत्व येऊ शकतं.

(३) हवा भरणे :

पाळी संपल्यावार गर्भाशयामुखातून गर्भाशयात हवा भरली जाते. त्यामुळे गर्भनलिकांचा मार्ग उघडा आहे की नाही याचे ज्ञान होतं. त्याचबरोबर लाळेसारख्या घट्ट द्रवानं ( म्यूकस ) गर्भनलिका बंद झाल्या असतील तर त्या पुन्हा मोकळ्या करायला मदत होते.

(४) गर्भाशयाच्या फोटो

या फोटोमुळे गर्भाशयाची पिशवी, गर्भनलिका यासंबंधी माहिती मिळते. त्याचबरोबर फायब्राईड पॉलीपसारख्या ट्यूमर्सची माहिती मिळते.

(५) संभोगानंतरची तपासणी :

संभोगानंतर काही तासांनी पत्नीच्या योनीमार्गातील व गर्भाशय मुखातील द्रवांची तपासणी करतात त्या द्रवांमध्ये असलेल्या शुक्रजंतूचे प्रमाण यामुळे कळतं.

(६) आणखी काही तपासण्या

यामध्ये आंतस्त्राव ( हार्मोन्स ), इस्ट्रोजीन, प्रोजेस्ट्रॉन, एफ्‌. एस्‌. एच्‌. एल्‌. एच‌. यांच्या तपासण्यांचा अभ्यास समावेश होतो.

यामध्ये स्त्रियांमध्ये निर्माण होणारे आंतस्त्राव व त्यांचं कमीजास्त होणारं प्रमाण याचं अचूक निदान करता येतं. त्याचबरोबर स्त्रीत्त्व व स्त्रीबीज निर्मिती याविषयी ज्ञान मिळू शकतं. परंतु ही तपासणी खूपच खर्चाची असते आणि ती करण्याची सोयही पुण्या मुंबई सारख्या मोट्या शहरातच आहे.

पती-पत्नीच्या तपासणीनंतर......

पती-पत्नीच्या तपासणीनंतर दोष कोणात आणि किती प्रमाणात आहे, याचा एकत्रपणे आणि साकल्यानं विचार करून त्यावर करावयाची उपाययोजना आखली जाते. दोष नेमका कुठं आहे तो नीट होईल का मूल होण्याची शक्यता किती असेल, हे डॉक्टरांकडून पती पत्नीनं समजावून घेतलं की मग पुढच्या उपाययोजना करणं सोयीचं जातं.

पुरुष-दोषावर उपाययोजना

(१) दोष निर्माण होऊ नयेत म्हणून उपाय : हार्निया, हायड्रोसिल, अंडगोळी अंडकोषात नसणं अशा विकारांवर वेळीच उपाय करण्यात आले म्हणजे पुढं येणारं वध्यंत्व टाळता येतं. अंडगोळी अंडकोषात नसणं यावर उपाय लहानपणीच मुलाला शाळेत घालण्यापूर्वीच करून घ्यावा. म्हणजे पुढं होणारे दुष्परिणाम टाळता येतातं. लहानपणी खेळताना, सायकलवर बसताना, कुस्ती खेळताना अंडबीजाला मार लागला असेल तर डॉक्टरांकडून उपचार करून घेणं आवश्यक असतं तसंच करकचून लंगोट बांधणं ही सवय वीर्यनिर्मितीला हानिकारक असल्यामुळे ती सवय बदलायला लावावी. वीर्य निर्मिती कमी प्रमाणात होत असेल तर लंगोट ना बांधता सकाळ संध्याकाळ दहा मिनिटं थंड पाण्यात बसावं. त्याचप्रमाणं लहानपणी होणाऱ्या गालफुगीम टॉफाईड, कावीळ यासारख्या रोगांमध्ये मुलाची नीट काळजी घ्यावी. मुलांवर योग्य संस्कार केले व सर्व गोष्टींची आरोग्य विषयक माहिती करून दिली तर अजाणतेपणी होणारे गुप्तरोग टाळता येतील.

(२) वीर्यनलिका बंद असल्यास उपाय : वीर्यनलिका कुठे, किती ठिकाणी व कशामुळे बंद झाली आहे याचा शोध घेऊन त्यावर उपचार करता येतात. बंद असलेला भाग काढून टाकून वीर्यनलिका परत जोडता येते. ही शस्त्रक्रिया अत्यंत काळजीपूर्वक व विशेष यंत्र व तंत्राच्या सहायाने ( मायकोसर्जरी ) केली गेली तर यशाचं प्रमाण खूपच वाढतं.

स्त्रीदोष उपाययोजना :

(१) दोष निर्माण होऊ नयेत म्हणून काळजी

लहानपणी मुलींच्यावर चांगले संस्कार केले तर व सर्व गोष्टींची आरोग्यविषयक माहिती करून दिली तर अजाणतेपणी व भीतीपोटी होणारे गुप्तरोग टाळता येतील. आईनं मुलींना स्वच्छतेची व आरोग्याची आवड निर्माण करावी.

ऍबॉर्शन घडवून आणण्याची शस्त्रक्रिया शक्यतो टाळावी. तशीच वेळ आल्यास गर्भपात तज्ज्ञ डॉक्टरांकडूनच व चांगल्या हॉस्पिटलमध्येच करवून घ्यावा.

(२) निश्चित उपाययोजना

(अ) हार्मोन्स : स्त्रीबीज जर वेळेवर निर्माण होत नसेल व पाळीही नियमित येत नसेल तर हार्मोन्सच्या गोळ्या देऊन हे घडवून आणता येतं. नवीन शोधामुळं स्त्रीबीज निर्माण होण्यासाठी हार्मोन्सची इंजेक्शन निघाली आहेत. सध्या त्याची किंमत जरी खूप असली तरी त्यांचा बऱ्याच अंशी फायदा होऊ शकतो.

(ब) पालथ्या पिशवीवर उपाय : केवळ पालथ्या पिशवीमुळे मूल न होण हे फारच थोड्या वेळा घडतं. बऱ्याच वेळा मूल होण्यासाठी पूर्णपणे तपासण्या न करता घाईघाईनं पालथी पिशवी सरळ करण्याचं ऑपरेशन केलं जातं आणि तेच बऱ्याच वेळा बंधत्वास कारण ठरतं.

(क) गर्भनलिका बंद असल्यास जोड ऑपरेशन : गर्भनलिका कुठे, किती ठिकाणी व कशामुळं बंद आहेत यावर उपाययोजना करणं जास्त श्रेयस्कर ठरतं. ही शस्त्रक्रिया अत्यंत काळजीपूर्वक व विशेष यंत्र तंत्राच्या सहाय्यानं ( मायक्रोसर्जरी ) केली तर यशाच प्रमाण खूपच वाढतं.

(ड) वारंवार गर्भपात होऊ नये म्हणून : याचं नेमकं कारण शोधून काढण्यासाठी बऱ्याच तपासण्या कराव्या लागतात. गर्भनलिका याच तोंड बंद असेल तर टाके घालून वारंवार होणारा गर्भपात टाळता येतो.

(इ) मानसिक उपाय योजना : वरील सर्व उपायांबरोबर स्त्रीला धीर देणं हे तितकंच महत्त्वाचे ठरतं. काही वेळेला नुसत्या डॉक्टरीच्या व्यक्तिमत्त्वामुळेच व समजावून देण्याच्या पद्धतीनंच तसंच उत्साहाच्या दोन शब्दानीच निम्म्याहून अधिक काम झालेलं असतं.

(फ) कृत्रीम गर्भधारणा : पुरुषाच्या वीर्यात जर दोष असेल व तो बरा न होण्यासारखा असेल तर दुसऱ्या अनाहूत डोनरचं वीर्य घेऊन कृत्रिम गर्भधारणा करता येते. अर्थात कृत्रीम गर्भधारणेच्या आधी पती पत्नी दोघानीही संमती द्यावी लागते. कृत्रीम गर्भधारणा ही पूर्णपणे गुप्तच ठेवली जात असल्यामुळं समाजाच्या दृष्टीनं पतीपत्नीचं जीवन कुठंही विस्कळीत होत नाही. पण यासाठी दोघांच्या मनाचा घट्टपणा व दोघंही समविचारी असायला हवेत

टेस्ट ट्यूब बेबी

गर्भनलिका पूर्णपणे खराब झाल्या असतील तर अशा वेळी गर्भनलिकेत गर्भधारणा करता कृत्रीम तऱ्हेने शरीराच्या गर्भधारणा करून तो गर्भ गर्भाशयाच्या पिशवीत वाढवता येतो ही पद्धती अगदी नवीनच उपलब्ध झाली आहे व जगातील फारच थोड्या हॉस्पिटलमध्ये याची सोय आहे.

काय गोष्टी करू नयेत ?

मूल होण्यासाठी साधू, बैरागी यांच्याकडून अघोरी उपचार करून घेऊ नयेत तसंच होणारं मूल हा मुलगा असावा म्हणून पुसंवेदन विधी काही ठिकाणी केला जातो. ही पूर्णपणे भोंदू समजूत आहे. पोटात वाढणारा गर्भ मुलगा की मुलगी हे, स्त्री पुरुष बीज एकत्र येत असतानाच ठरत असतं आणि आत्ताच्या शास्त्राप्रमाणं हे लिंग कोणीही आणि कोणत्याही उपायानं बदलू शकत नाही. गंडेदोरे, मंत्रताईत, साधू, संन्याशी यांच्या तथाकथित मंत्रसामर्थ्यामुळं मूल होत, ही समजूत अत्यंत चुकीची आहे. असल्या गोष्टींना कोणीही फसता कामा नये. निपुत्रिकेला पुत्रवती होण्यासाथी वर सांगितलेले वैद्यकीय उपचारच उपयोगी पडतील.

आणि एवढंही करून मूल होऊ शकलं नाही तर काय करायचं ? मुख्य म्हणजे निराश व्हायचं नाही। आजारी माणसावर आपण उपचार करता असतो. खूप काळजी घेतो. पण दुर्दैवानं त्यातूनही तो दगावला तर आपण काय करू शकणार ? दुःख मिळायलाच हवीत आणि पुढे जायला हवं. आपल्याला मूल होणार नाही अस जरी पक्क कळालं तरी निराश न होता, एका मुलाची आई होता येत नाही, तर आपल्या समाजातल्या अनेक अनाथ मुलांची आई तुम्ही होऊ शकालच की नाही ? स्त्री ही मातृहृदयी असते. प्रेम माया तिनं लावली तर अनाथांची आई होणं अवघड नाही.

डॉ. अरविंद संगमनेरकर - M.D.,D.G.O. स्त्री रोग व प्रसूतीशास्त्र तज्ज्ञ

आयुर्वेद

आयुर्वेदाच्या इतिहासात एक गोष्ट आहे. जीवक नावाचे एक तरुण वैद्य आपल्या गुरुंकडे आयुर्वेद शिकत होते. ते अतिशय बुद्धिमान होते, गुरुंनी शिकवलेले त्यांना चटकन समजत असे व कायमचे लक्षातही राहत असे. या पद्धतीने सात वर्षे शिक्षण घेतल्यानंतर एक दिवस त्यानी गुरुला विचारले की माझे शिक्षण पूर्ण झाले आहे का नाही हे कसे समजावे? यावर गुरुंनी उत्तर दिले की बागेत काम करण्याची खुरपणी घेऊन चारही दिशांनी प्रवास कर व जे औषधी नाही असे द्रव्य घेऊन ये.
जीवक निघाले, काही दिवसांनी परत येऊन म्हणाले, आचार्य मी चारही दिशांना खूप फिरलो पण मला औषधी नाही असे काहीच सापडले नाही. यावर गुरु म्हणाले, तुझे शिक्षण पूर्ण झाले. पुढे हेच वैद्य राजवैद्य झाले.

ही गोष्ट इथे सांगण्याचे कारण म्हणजे आपल्याही घरात, आसपास असणाऱ्या सर्व नैसर्गिक गोष्टींमधे काही ना काही औषधी गुण असतात. यांची योग्य योजना करता आली तर ते घरगुती उपचारच होत. सध्या

meditation

चे दिवस आहेत उन्हाळ्याचे. उष्णतेने शरीरातील पित्तदोष वाढणे स्वाभाविक असते. अशावेळी करता येण्यासारखे घरगुती उपचार याप्रमाणे होत.

उन्हाळ्यात पाणी पिऊनही समाधान होत नाही, ओठ, घसा कोरडे पडतात, हातापायाच्या तळव्यांची आग होते, अशावेळी साधारण एक लिटर पाण्यात दोन सुके अंजीर, मुठभर मनुका आणि दोन चमचे धने घालून हे सर्व मिश्रण रात्रभर माठात ठेवावे. सकाळी रवीने घुसळून, गाळून पुन्हा माठात ठेवावे. दिवसभरात हे पाणी थोडे थोडे प्यायल्यास ऊन्हाळ्याचे त्रास कमी होतात. ऊन्हाळ्यामधे थकल्यासारखे वाटते तेही कमी होते.

उन्हाळ्यामधे द्राक्षे मिळतात. द्राक्षांचा रस हा उन्हाळ्यातील ऊष्णता कमी करण्यासाठी उत्कृष्ट असतो. द्राक्षाच्या रसात चिमुटभर जीरेपुड आणि चिमुटभर बडिशेपेची पूड टाकुन प्यायले असता उन्हाळ्यातील उष्णतेमुळे क्षीण झालेला रसधातु पुन्हा टवटवीत होतो. द्राक्षे वार्याने थंड असल्याने अंगाचा दाह, मूत्राचा दाह वगैरे लक्षणे कमी होतात.

बऱ्याच व्यक्‍तींना उन्हाळ्यात डोळ्यांची आग होणे, डोळे लाल होणे, दुखणे वगैरे त्रास होतात. संगणकावर वा प्रखर प्रकाशात काम करणाऱ्यांना तर उन्हाळ्यात डोळ्यांची विशेष काळजी घ्यावी लागते. यासाठी डोळ्यांवर कोहळ्याच्या रसाच्या घड्या ठेवणे उत्तम असते. शुद्ध गुलाबपाण्याच्या किंवा न तापवलेल्या कच्च्या, थंड किंवा तापवून गाळून घेतलेल्या दुधाच्या घड्या ठेवण्याचाही चांगला उपयोग होताना दिसतो.

* उन्हाळ्यात लहान मुलांना तसेच त्वचा असणाऱ्यांना घामोळे येताना दिसते, यावर खरबूजाचा गर लावण्याचा उपयोग होतो.

* उष्णता वाढल्याने तळपायांची जळजळ होत असल्यास दुधीचा कच्चा कीस बांधून ठेवण्याचा तसेच दूर्वांच्या लॉनवर अनवाणी चालण्याचा उपयोग होतो.

* उन्हाळ्याच्या दिवसात प्रत्यक्ष उन्हात जाण्याचे टाळणेच हितकर असते. पण उन्हात जावे लागलेच तर उन्हाचा त्वचेवर परिणाम होऊ नये, त्वचा काळवंडू नये यासाठी चेहरा, हात वगैरे उन्हाचा संपर्क आलेल्या ठिकाणी घरचे ताजे लोणी चोळणे उत्तम असते.

* उन्हाळ्यात लघवी करताना आग होणे, लघवीचा रंग गडद होणे वगैरे लक्षणे असल्यास कपभर दुधात अर्धा चमचा चंदनाचे गंध व चवीनुसार खडीसाखर मिसळून घेतल्यास लघवीला साफ होऊन बरे वाटते.

* उष्णता बाधू नये म्हणून उन्हाळ्यात शीतल द्रव्याची उटणी लावावीत असे आयुर्वेदात सुचविले आहे. अनंतमूळ, वाळा, चंदन, ज्येष्ठमध वगैरे शीतल, सुगंधी व वर्णात हितकर द्रव्यांचे चूर्ण व मुगाच्या डाळीचे पीठ यापासून तयार केलेल्या उटणे लावून स्नान करणे उन्हाळ्यात उत्तम होय.

उन्हाळ्यानंतर येतो पावसाळा, म्हणजे आरोग्याची सर्वतोपरी काळजी घेण्याचा काळ. पावसाळ्यात अग्नी मंद होत असल्याने पचन खालावते, वात वाढतो, त्यामुळे शरीरशक्‍ती कमी होत असते. शिवाय पावसाळ्यात जंतुसंसर्ग होण्याचे प्रमाण सर्वाधिक असते. या गोष्टी लक्षात घेता पावसाळा सुरू झाला की त्रास होण्यापूर्वीच काही घरगुती उपचार करणे इष्ट असते.

* गवती चहा, आले, तुळशी, दालचिनी यांच्यासह उकळलेल्या पाण्यात चवीनुसार साखर टाकून पावसाळ्यात रोज एकदा घेणे चांगले असते. यामुळे जंतुसंसर्ग होण्यास प्रतबंध होतो व पचनशक्‍ती चांगली राहण्यास मदत मिळते.

* ओवा, तीळ, ज्येष्ठमध, सैंधव वगैरे द्रव्यांपासून बनविलेली सुुपारीपावसाळ्यात जेवणानंतर खाणे हितावह असते, याने पचनाला मदत होते.

* पावसाळ्यात पुदिना हे सुद्धा मोठे घरगुती औषध आहे. जेवणात पुदिन्याची ताजी पाने, काळी द्राक्षे, जिरे, हिंग, सैंधव, मिरी यापासून बनविलेली चटणी खाण्याचा उपयोग होतो. याने तोंडाला रुची येते, शिवाय पचनास मदत मिळते.

* दुपारच्या जेवणानंतर किसलेले आले व पुदिन्याचा रस टाकून ताक घेण्यानेही पचन व्यवस्थित राहण्यास मदत मिळते. विशेषतः जुलाब, आव वगैरे त्रासांना प्रतबंध होतो.

* पावसाळ्यात वातदोष वाढतो. वात वाढला की त्यापाठोपाठ दुखणेआलेच. संधिवात, आमवात वगैरे दुखणे असणाऱ्यांना याचा अनुभव येतोच. अशा व्यक्‍तींनी व इतरांनीही पावसाळ्यात सुंठ-गूळ-तूप यापासून बनविलेली लहान सुपारीच्या आकाराची गोळी घेणे चांगले असते. याने वातदोष नियंत्रित होण्याबरोबर पचनालाही मदत मिळते.

* पावसाळ्यात भूक लागत नसली, पोट जड वाटत असले, गॅसेस अडकून राहिले आहेत असे वाटत असले तर लिंबू व आल्याच्या रसाच्या मिश्रणात थोडी जिरे पूड व सैंधव टाकून तयार केलेले चाटण थोडे थोडे चाटणे उत्तम असते.

* हिंग्वाष्टक नावाचे चूर्ण पावसाळ्यात उत्तम होय. त्रास असो वा नसो, प्रकृतीनुसार पाव ते अर्धा चमचा चूर्ण व थोडेसे तूप भाताच्या पहिल्या घासाबरोबर घेण्याने भूक लागायला मदत होते, अन्न व्यवस्थित पचते.

* पावसाळ्यात तेल लावून गरम पाण्याने स्नान करणे हितावह असते. वातशामक द्रव्यांनी सिद्ध केलेले तेल वापरणे अधिक हितावह असते.

* जंत होऊ नयेत व झालेले जंत नष्ट व्हावेत यासाठी उपाययोजना करणे एरवीही चांगले असते. पावसाळ्यात मात्र याकडे विशेषतः द्यावे लागते. त्यादृष्टीने महिन्यातून आठ दिवस सकाळी चमचाभर वावडिंगाचे चूर्ण मधासह घेणे चांगले असते. कढीलिंबाची ताजी पाने वाटून केलेली गोळी अधून मधून घेण्याचाही उपयोग होतो.

* पावसाळ्यात जंतुसंसर्ग होण्याची शक्‍यता सर्वाधिक असते. यास प्रतबंध होण्याच्या दृष्टीने घर, ऑफिस, दवाखाने वगैरे सार्वजनिक ठिकाणी नियमितपणे धूप करणें उत्तम असते. यासाठी कडुनिंबाची पाने, वावडिंग, कापूर, ऊद वगैरे द्रव्यांचे मिश्रण वा तयार ‘संतुलन प्युरिफायर धूप’ वापरता येतो.

पावसाळ्यानंतर हिवाळ्याची चाहूल लागण्यापूर्वी येणाऱ्या शरद ऋतूत पुन्हा एकदा पित्त वाढत असते किंबहुना पित्ताचा प्रकोप ह्याच काळात होत असल्याने उन्हाळ्यात घ्यायची काळजी पुन्हा या दिवसात घेणे आरोग्यरक्षणासाठी चांगले असते.

तसे पाहता हिवाळा हा आरोग्यदायक काळ असतो. या दिवसात अग्नी प्रज्वलित होतो, शरीरशक्‍ती आपोआपच वाढते. थंडीचा त्रास होऊ नये व निसर्गतः वाढणाऱ्या शरीरशक्‍तीला घरगुती उपायांची जोड मिळून ताकद कमवून ठेवता यावी यासाठी निश्‍चित प्रयत्न करता येतात.

* हिवाळ्यात नियमित अभ्यंग करणे उत्तम असते. यामुळे थंडीचे निवारण होते व शरीरशक्‍ती वाढायला मदत होते.

* थंडीमुळे त्वचा कोरडी होण्याचा संभव असतो. हे टाळण्यासाठी अगोदर अंगाला तेल लावून नंतर अगरू, जटामांसी, केशर, वगैरे द्रव्यांनी युक्‍त “सॅन मसाज पावडर’सारख्या उटण्याने स्नान करण्याने हिवाळ्यात उत्तम असते.

* थंडीमुळे सर्दी, खोकला होऊ नये, तसेच शरीरात कफदोष साठू नये यासाठी हिवाळ्यात नेहमीच्या चहात गवती चहा टाकणे चांगले असते.

* हिवाळ्यात जेवणानंतर त्रयोदशी विडा म्हणजे शास्त्रोक्‍त पद्धतीने बनविलेला विडा खाण्याचाही उपयोग होतो. याने अतिरिक्‍त कफदोष कमी होऊन पचन चांगले होते.

* हिवाळ्यात बदामाची खीर खाणे चांगले असते. रात्री चार बदाम भिजत घालावेत, सकाळी साले काढून बारीक वाटावेत व दुधात कालवून थोडे आटवावे. यात खडीसाखर व थोडे तूप टाकून तयार झालेली खीर सकाळी खावी.

* डिंकाचे लाडू, कोहळेपाक, गव्हाची खीर आदी धातुपोषक पदार्थांचा आहारात समावेश करणेही हिवाळ्यात हितकर असते.

(By Mail)

फळांचे औषधी उपयोग

आंबा :

Mango

आंबा हा फळांचा राजा तो फक्त वैशाख व ज्येष्ठ महिन्यातच खावा, असे आयुर्वेदाच्या अभ्यासकांचे सांगणे आहे. हे फळ शक्तिवर्धक आहे. अन्नाबद्दल रूचि उत्पन्न करणे व भूक वाढविणे हे त्याचे प्रमुख गुण होत तसेच शरीराची आग होत असल्यास आंबा उपयुक्त ठरतो. यावरून उन्हाळ्यात आंबा खाणे योग्य आहे. हे दिसून येते. अतिसार म्हणजे वारंवार शौचास होणे. या व्याधीवर आंब्याची साल व कोय उपयुक्त आहे. साल ठेवून तिचा काढा तयार करून घेतात. तसेच कोय भाजून तिचे चूर्ण करून मधातून दिल्यास विशेषतः लहान मुलांचा अतिसर दूर होतो.

अंजीर :

Anjeer

अंजीर ह्या फळाचा उल्लेख पुरातन ग्रंथात तसेच बायबलमध्ये उन्हाळा व पावसाळा या दोन्ही ऋतुत अंजीराचा सीझन असतो. उन्हाळ्यात येणारे अंजीर गोड असते. अंजीरातून शरीराला लोह, व्हिटॅमिन्स ए. बी. सी बऱ्याच प्रमाणात मिळते. तसेच शर्करा भरपूर प्रमाणात मिळते. अंजीर खायला थंड व पचायला जड असतात. यांच्या सेवनाने गॅससेची तक्रार दूर होते. तसेच पित्त विकार, रक्तविकार, व वात विकार यातील औषधी गुणधर्मामुळे दूर होतात.

अपचन ऍसिडीटी, गॅसेसचा त्रास होणाऱ्या व्यक्तींनी दररोज सकाळ-संध्याकाळ १ ते २ अंजीर खावीत किंवा याचा रस प्यावा. वरील त्रासापासून आराम मिळेल. अंजीर खाल्यानी बौद्धिक व शारिरीक थकवा दूर होण्यास मदत होते. लघवीचा त्रास होत असल्यास दिवसातून तीन-चार अंजीर नियमितपणे खावीत यामुळे मुत्रविकार दूर होतात. अशक्त व्यक्तींनी अंजिराचे रस अथवा खाल्याने गुणकारी परिणाम होतात. त्वचा विकार, त्वचेची आग होणे व कांजण्या या आजारात आराम पडण्यासाठी अंजीर खावीत. दररोज कोणतेही एक फळ खाल्याने शरीर निरोगी नक्कीच बनते.

अननस :

Pineapple

अननस खाल्ल्याने अजीर्णाचा त्रास कमी होतो. त्याचप्रमाणे पोटात केस गेल्यावर अंजीर खाल्यामुळे त्याचे पाणी होते, असे म्हणतात. अंजीर शक्तीवर्धक आहे. तसेच ते सारकही आहे. म्हणजे ओली किंवा सुकी दोन अंजिरे झोपण्याच्या वेळी खाऊन थोडे पाणि प्यावे. थोड्याच दिवसात तक्रार दूर होते.

आवळा :

Awala

आवळा हे फळ हे फळ बहुगुणी आहे. हे मुख्यतः पित्तशामक आहे. आवळ्याचा चमचाभर रस, जिरे व खडीसाखर यांचे मिश्रण सकाळ, संध्याकाळ दोन-तीन दिवस घेतल्यास आम्लपित्त कमी होते. पित्तामुळे भोवळे येणे कमी होते. लघवीच्या विकारांवर हे परिणामकारक औषध आहे. आवळा व खडीसाखर घेतल्याने लघवीला साफ होते आणि लघवीच्या वेळी आग होणे किंवा लघवी कमी होणे या तक्रारी दूर होतात. आवळा उपलब्ध नसल्यास त्या पासून तयार केलेली आवळकंठी वापरतात येते. याशिवाय अंगावर खरका किंवा कोरडी खरूज उठल्यास आवळकंठी पाण्यात भिजवून अंगास लावावी. आवळ्यापासून तयार केलेला मोरावळा हा तर पित्तावर उत्तम आहे. रोज परसाकडेला साफ होत नाही, पोट जड वाटते, भूक लागत नाही, मन प्रसन्न राहत नाही, आजारी असल्यासारखे वाटते अशा तक्रारींवर मोरावळा रामबाण आहे. रोज नियमाने मोरावळ्यातले दोन आवळे खाण्यामुळे, ही नेहमी दिसून येणारी तक्रार दूर होते. आवळ्यापासून बनविलेले तेल डोके थंड राखण्यासाठी उपयुक्त आहे.

ऊस :

Sugar Cane

ऊस खाण्यामुळे लघवी साफ होते. तसेच लघवीच्या वेळी आग होत असल्यासही तो उपयुक्त ठरतो. कावीळ झालेल्या रोग्यास तर ऊसासारखे दुसरे औषध नाही. काविळीचे रोग्याने रोज दोन वेळा जेवणापूर्वी ऊस खावा. चार पाच दिवसात प्रकृतीत सुधारणा होते. ऊस हा थंड आहे. त्यामुळे उन्हाळ्यात घेतल्यास उपकारक ठरतो. त्याचप्रमाणे कलिंगड हे एक थंड फळ आहे. त्याबद्दल एकच काळजी घेणे आवश्यक आहे. रस्त्यात गाडीवर मिळणाऱ्या उघड्या फोडी खाल्यामुळे एखाद्या वेळी अपाय होण्याचा संभव असतो. कारण त्याच्यावर माशा बसून व रस्त्यातील धूळ उडून त्या दूषित झाल्या असण्याचा संभव असतो.

द्राक्षे :

Grapes

द्राक्षे हे मलावरोधावर उत्तम औषध आहे. तसेच त्यापासून तयार केलेला मनुकाही एक चांगले टॉनिक आहे. पचनाच्या सर्व विकारांवर द्राक्षे उपयोगी आहेत. घसा जळजळणे, घशाशी येणे, पोटदुखी, आंबट ढेकरा, उलटी या अपचन व आम्ल पित्ताच्या लक्षणावर द्राक्षे खावी. मूठभर द्राक्षे व मूठभर बडीशेप ठेचून कपभर पाण्यात रात्री भिजत घालून ठेवावी व सकाली कुसकरून थोडी खडीसाखर घालून सेवन केल्याने वरील सर्व तक्रारी दूर होतात. मोठ्या तापानंतर आलेल्या अशक्ततेवर मनुका मनुका उपयुक्त आहेत. रोज सकाळी १०-१५ मनुका बिया काढुन खाव्या आणि त्यावर १-१.५ कप दूध घ्यावे. त्यामुळे भूक वाढते. अन्न पचन होते व शक्ति येते. घसा बसणे, कावीळ व अन्नाबद्दल रूचिहीन वाटणे या विविध विकारांमध्ये मनुका खाण्याने फायदा होतो. मनुका तुपावर परतून व त्यात चवीपुरते सैंधव घालून खाल्याने चक्कर येण्याचे थांबते. मनुका, जेष्ठमध व गुळवेल समप्रमाणात एकत्र करून तयार केलेला काढा पित्तावर उपयुक्त ठरतो. क्षय इत्यादी छातीच्या विकारांत खोकल्याबरोबर रक्त पडते, त्या वेळी हा काढा घ्यावा क्षयरोगांमध्ये येणारी अशक्तता मनुक खाण्यामुळे कमी होते.

पपई े :

Papaya

पपई हे फार मोठे औषध आहे. रोज नियमाने खाल्ल्यास भूक उत्तम लागते व अन्न पचते. पपईचा चीक गजकर्ण, खरूज, नायटा या त्वचारोगावर लावल्यास उपयुक्त ठरतो. जंतावर हे एक चांगले औषध आहे. हा चीक व मध दोन दोन चमचे एकत्र घोटावा. त्यात दुपट्ट गरम पाणी घालून थंड झाल्यावर लहान मुलांना अर्धा चमचाभर ओळीने तीन दिवस द्यावा. जंत पडून जाताट. गर्भवती स्त्रियांनी पपई खाऊ नये. त्यांना ती अपायकारक असते.

लिंबु :

Lime

लिंबाचे अनेक औषधी उपयोग आहेत. लिंबु उभे कापून त्यावर खडीसाखर घालून चोखल्यास ओकारी थांबते. पोटदुखी थांबण्यास आले व लिंबाचा रस साखर घालून सेवन करावा. अजीर्णावर लिंबू फार उपयुक्त आहे. ते आडवे कापून त्यावर सुंठ किंवा सैंधव (मीठ) घालून निखाऱ्यावर गरम करावे आणि वारंवार चोखावे. त्यामुळे करपट ढेकर, ओकारी, पोटफुगी वगैरे त्रास कमी होतो. पित्त झाले असल्यास रोज लिंबाचे सरबत घ्यावे. त्याने भूक वाढते. अन्न पचते व शौचास साफ होते. मेदवृद्धि म्हणजे लठ्ठपणा कमी करण्यासाठीही रोज लिंबाचा रस उन पाण्यात घालुन घेतल्याने उपयोत होतो. वाळलेले लिंबू मधात घालून चाटण म्हणून घेतल्यास उचकी तसेच ओकारी थांबण्यास मदत होते. अंगाला कंड सुटत असल्यास लिंबाचा रस खोबरेल तेलात मिसळून अंगास चोळावा व ऊन पाण्याने स्नान करावे. कंड कमी होतो. नायटे व डोक्यातील खवडे यावरही लिंबाचा रस चोळल्याने चांगला परिणाम होतो.

जांभूळ :

Jamun

जांभूळ हे अत्यंत पाचक आहे. तसेच ते अतिसार थांबविणारे औषध आहे. जांभळीच्या पानांचा रस आणि सालीपासून केलेला काढा घेतल्यानेही अतिसाराला प्रतिबंध होतो. जांभळाच्या बियांचे चूर्ण हे मधुमेहावर उत्तम औषध आहे. परंतु ते तज्ञांच्या सल्ल्यानेच घ्यावे.

जांभूळ हे अत्यंत पाचक आहे. शौचास साफ होत नसेल तर त्यावर जांभळीची साल देतात. ही साल चांगली तीन तोळे ठेवून पाण्यात एक अष्टमांश काढा करावा. व त्यात अर्धा तोळे तूप, ३ मासे दूध व पैसाभर खडीसाखर घालून घ्यावा. दिवसातून दोन वेळा असा घेतल्यास पाच-सात दिवसांत अतिसार व आव थांबते. स्त्रियांच्या अंगावर जाणारे पाणीदेखील वरील काढ्याने थांबते. चांगल्या पिकलेल्या जांभळाच रस काढून बरणीत भरून ठेवता व एक वर्ष जाऊ द्यावे. अशा रसाला जांभळाचा शिरका, जांभळाची आंब, खाटी किंवा जांभळाचे आसव असे म्हणतात. जांभळाचे आसव तर वेळेव अर्धा तोळा चौपट पाणी घालून घ्यावे, त्याने मोडशी व पोटदुखी बरी होते. जांभळाचा मुख्य उपयोग मधुमेहावर होतो. मधुमेहाच्या रोग्यांनी जांभळाच्या बियांचे चूर्ण दर चार चार तासांनी एक एक मासा घोटभर ऊन पाण्याबरोबर घ्यावे. असे दोन महिने घेऊन पथ्याने राहिल्यास लघवीतून साखर जाण्याचे प्रमाण बरेच कमी होते. जांभळाच्या सालीच्या काढ्याच्या गुळण्य केल्यास आलेले तोंड बंद होते. तोंडावर उठणाऱ्या मुरमाच्या पुटकुळ्या जांभळीच्या बिया उगाळून लेप केल्याने जातात. जांभूळ रक्त शुद्ध करते.

डाळींब :

Dalimb Anar

डाळिंबात अनेक औषधी गुण आहेत. डाळिंबाचा रस व खडीसाखर एकत्र करून घेतल्यास पित्त कमी होते. अपचन दूर होते. आणि त्यामुळे निर्माण झालेला शौचाचा विकार (संगहणी) बरा होतो. काविळीवरही हे एक चांगले औषध आहे. हृदयविकारामुळे छातीत दुखत असल्यास डाळींबाचा रस उपयोगी पडतो. डाळींबाचा रस, मध, साखर यांचे चाटण लहान मुलांचा खोकला बरे करते. फार बोलण्याने आवाज बसला असल्यास तो सुधारतो.

केळे :

Banana

केळे हे शक्तिवर्धक आहे. पण पचण्यास जड असते. हे लक्षात ठेवावे. तसेच ते थंड असल्यामुळे अंगाची आग कमी करते. वारंवार पित्त होण्याची तक्रार असल्यास केळे खाण्याने उपयोग होतो. तरूण वयात उद्भवणाऱ्या स्वप्नावस्थेच्या विकारावररोज जेवणानंतर १ ते २ केळी खाल्याने १५-२० दिवसांत उपाय होतो.

स्ट्रॉबेरी :

Strawberry

चवीस आंबट, किंचित गोड, जिभेची चुणचुण करणारी स्ट्रॉबेरी आंबट चवीमुळे पित्त वाढविणारी व रक्ताची निर्मिती करणारी आहे. त्यामुळे अजीर्ण, मळमळ, त्यामुळे अन्नपचन न होणे अशा वेळी स्ट्रॉ चावून खावी. वर पाणी पिऊ नये. रक्तवाढीसाठी अर्थात पंडुरोग किंवा ऍनिमियामध्ये लोहाच्या कल्पांबरोबर स्ट्रॉबेरीचा वापर केल्यास लोहाच्या औषधांचे दुष्परिणाम टाळता येतात.

छातीत धडधड, भीती वाटणे, आत्मविश्वासाचा अभाव, थोड्या श्रमाने थकवा येणे असा वेळी स्ट्रॉबेरी रस व खडीसाखर हे मिश्रण थोडे थोडे सायंकाळी घ्यावे. एकदम पिऊ नये. उपयोग उत्तम होतो.

स्ट्रॉबेरीचे आईसक्रीम, मिल्कशेक हे प्रकार खाऊ नयेत. त्याने आम्लपित्त, त्वचा विकार, मूळव्याध होऊ शकते. सर्दी खोकला असतांना वापरू नये. पित्ताच्या उलट्या होत असल्यास स्ट्रॉबेरी वापरू नये.

बोरे :

Bor Ber

आंबट-गोड बोरात व्हिटॅमिन ए, सी, फॉस्फरस, कॅल्शियम, प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट इत्यादी जीवनाश्यक सत्वे आढळतात। यांच्या नियमित सेवनाने मुत्रपिंडातील खडा, अतिसार, हगवण, वातविकार यावरती अतिशय लाभदायक होऊ शकते. मूठभर वाळलेली बोरे घ्या आणि ग्लासभर पाण्यामध्ये उकळत टाका. निम्या प्रमाणात पानी आटले की ते पाणी थंड करा. हा बोरांचा काढा अशाप्रकारे तयार करावा. त्यात चवीसाठी साखर किंवा मध टाकून रोज रात्री झोपण्यापूर्वी प्या. यामुळे मेंदूचा थकवा दूर होऊन स्मरणशक्ती वाढते. हे सर्वात स्वस्तच प्रभावी ‘ब्रेनटॉनिक’ होऊ शकते. बी काढलेली बोरे जाळून त्याचे भस्म व लगदा यांच्या मिश्रणात थोडासा लिंबाचा रस टाकून मलग तयार करा. हे मलम चेहऱ्यावरच्या मुरमांवर लावल्यास मुरमे नाहीशी होतात.

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अकाली केस पांढरे होणे

वाढत्या वयानुसार केस पांढरे होणे ही एक नैसर्गिक गोष्ट आहे. परंतु कमी वयात केस पांढरे होऊ लागणे हा निश्चितच चिंतेचा विषय होतो. अकाली केस पांढरे होण्याची अनेक करणे असतात. केसांना तेल न लावणे हलक्या किंमतीच्या साबण व शाम्पूचा अधिक वापर करणे, सतत औषधे घेणे, डोकेदुखी, सर्दी-पडसे, बद्धकोष्ठता, मानसिक तणाव, अशक्तपणा, केसांत कोंडा होणे, निद्रानाश, आनुवंशिकता इ.कारणांमुळे केस अकाली पांढरे होतात.

शरीरातील व्हिटॅमिनची कमतरता असल्यानेही केस अकाली पांढरे होतात. अकस्मात दुर्घटना किंवा शोक संदेश मिळाल्यासही लोकांचे केस पांढरे झाल्याचे आढळले आहेत.

एकाच वेळी सगळे केस पांढरे होणे असे प्रकार विचित्र या सदरातच मोडतात. सर थॉमस मूर तसेच मेरी ऍन्टोनेट अशा प्रसिद्ध व्यक्तींचे सर्व केस काही क्षणातच पांढरे झाले होते. असेही काही लोक आढळले आहे की ज्यांचे केस हिवाळ्यामध्ये पांढरे होतात व उन्हाळ्यामध्ये पुन्हा काळे होतात. वैद्यकीय तज्ज्ञांना अद्यापही या गोष्टीचे खरे कारण समजू शकलेले नाही.

केस अकाली पांढरे होण्याच्या समस्येपासून वाचवण्यासाठी सावधगिरी बाळगणे आवश्यक असते. त्याकरीता नियमित दिनचर्या, केसांची उचित सफाई, संतुलित आहार, व्यायाम उत्तम झोप यांची आवश्यकता असते. केस काळे राखण्यासाटःई शरीराला प्रोटिन व्हिटॅमिन ए. बी. सी. डी. ई. कॅलशीअम आयोडीन, फॉस्फोरस, खनिज क्षार, कार्बोहायड्रेट, आयर्न, कॉपर इ. पदार्थ पर्याप्त प्रमाणात मिळाले पाहिजेत. व्हिटॅमिन व कॉम्लेक्स मध्ये आढळणारे पॅन्टोर्थेनिक ऍसिड फॉलिक ऍसिड इ. पदार्थ केस काळे राखण्यात महत्वाची भुमिका बजावतात.

शरीराला सर्व द्रव्य योग्य प्रमाणात मिळवीत या करिता आपल्या आहारात दूध, दही, लोणी, पनीर, अंडे, गाजर, मुळा, टोमॅटो, मटार, पालक, लिंबू, आवळा, खजूर, द्राक्षे, सफरचंद, मोसंबी, पालेभाज्या, ताजी फळे, अंकुरीत धान्ये आदिंचा समावेश असावा.

अकाली केस पांढरे होण्याच्या संदर्भातील महत्त्वाच्या गोष्टी :

  • एक-दोन केस पांढरे झाले असल्यास ते केस तोडू नका. असे केल्याने केस पांढरे होऊ लागता.
  • थोडे केस पांढरे झाले असल्यास डाय करू नका. त्यामुळे काळ्या केसावरही प्रभाव पडतो. केस आणखी वेगाने पांढरे होऊ लागतात.
  • केस धुण्यासाठी साबण व शाम्पू ऐवजी आवळा, रिठे, शिकेकाई, बेसन, दही इ. चा वापर करा. खुप गोड पदार्थ, तेलकट, मसालेदार भोजन, दारु, अमली पदार्थ यांचे सेवन करु नक.
  • केस धुण्यासाठी गरम पाण्याचा वापर करावा.
  • केसांमध्ये हेयर स्प्रे व केस वालविण्यासाठी हेयर ड्रायरचा वापर कमीत कमी वापर करावा.

मेंदी :

पांढऱ्या केसांसाठी वनौषधी संच -

(मेंदी, आवळा, मंडूर, जास्वंद, माका, मुलतानी माती, मोतिया, रोशा तेल)

मेंदी स्थाननि गुणाने ‘केश्य’ म्हणजे केशवर्धक व केशरंजक आहे,तसेच शोथहार दाहप्रशसन व वेदना स्थापनही करते. म्हणूनच एक थंडावा देणारी वनौषधी म्हणून उष्ण कटिबंधात हिचा सर्रास वापर होत होता. हळूहळू ही मेंदी सौंदर्य प्रांतात शिरकाव करती झाली आणि आता तर एखाद्या राणीच्या थाटशत पूर्ण जगभर प्रस्थापित झाली आहे. परदेशातून तर हेना हेअर कंडिशनर व हेना शांपू चांगलेच लोकप्रिय झाले आहेत. दरवर्षी भारतातून निर्यात होणाऱ्या मेंदीची टनावारी वाढतच आहे.

केसांकरिता मेंदीच्या वापरावे अनेक फायदे आहेत. मुख्यत्वेकरून मेंदी जरी केस रंगवण्यासाठी वापरली जात असली तरी अशीच नियमित लावण्याने केसांचे आरोग्य सुधारते. केसांवर एक छान तकाकी येऊन केस सुटे सुटे होऊन खुलतात. ज्याला कंडिशन असे म्हणले जाते. केस अकाली पांढरे होत नाहीत. डोक्याला कोंडा होण्याचा थांबतो व केसांची वाढ होते. तुरळक पांढरे झालेल्या केसांन मेंदी लावून झाकता येते. मात्र पूर्ण किंवा जास्त पांढरे केस असणारे बहुधा रासयनिक डायच लावतात. परंतु त्यांनीही या द्रव्यांचे दुष्परिणाम होऊ नयेत म्हणून १५ दिवसांतून एकदा मेंदी लावावी.

मेंदी फक्त पांढऱ्या केसांनाच रंगवते (काळे केस तसेच राहतात.) बऱ्याचजणांना नुसत्या मेंदीने केसांना येणारा रंग आवडत नाही. म्हणून या संचात मंडूर (लोह) व आवळा यांचे मिश्रण सोबत वापरले जाते. मंडूर व आवळ्याच्या रासायनिक संयोगाने काळा रंग तयार होतो. माका व जास्वंद या दोन्ही वनौषधी केशरंजक मान्यता पावल्या आहेत.अ मुलतानी मातीने मिश्रणाला चिवटपणा येऊन केसांवर पसरता येते. हा अनुभव अल्हाददायी व्हावा. म्हणून केशवर्धक मोतियारोशा तेलही संचातच दिले जाते.

आजकाल तरुण मुलां-मुलीतच पांढरे केस दिसू लागले आहेत। आहारातल्या चुका, मानसिक ताण व रासायनिक प्रसाधनांचा जबरदस्त प्रचार याला बळी पडलेल्या आमच्या नव्या पिढीला या वनौषधी हे एक वरदान आहे.

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